सिद्दारमैया का मुख्यमंत्री बनना लंबे राजनीतिक जीवन की साधना से गुज़रना है। एक नेता को अपने जीवन में सामाजिक संबंधों का भी ताना-बाना बुनना पड़ता है। भारत के लोकतंत्र की यही खूबी है। लंबे संघर्ष से तप कर कोई नेता इस पद पर पहुंचता है तो कोई इस वजह से भी मंत्री बन जाता है कि वो सिंधिया जैसे राजघराने से आता है। बहुत से सांसद केवल धन-बल के दम पर उस जगह पर हैं और कई साल से हैं लेकिन वहां से आगे नहीं जा सके। केवल अपनी भीमकाय गाड़िओं में हूटर बजाकर घूमते रह जाते हैं। सिद्दारमैया का जीवन बता रहा है कि हर दिन उन्होंने कुछ जोड़ा है, जहां थे, वहां से आगे आए हैं। 1989 के बाद कर्नाटका में कांग्रेस को इतनी सीट मिली है वो भी तब जब बीजेपी की तरफ से प्रचार और रोड शो का चेहरा केवल नरेंद्र मोदी थे। रोड शो में नरेंद्र मोदी के साथ राज्य बीजेपी का कोई चेहरा भी नहीं था। बीजेपी के स्टार प्रचार नरेंद्र मोदी को हराने वाले किसी भी नेता को पहले पन्ने पर जगह मिलनी चाहिए थी लेकिन अब ज़माना बदल गया है।
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